एक अनुभव१२ जून २०१०, मैं और मेरे साथी निकल पड़े रोज़ की तरह ऐसे बच्चों की तलाश में जिन्हें काल ने जकड रखा है कुछ ऐसे पंजो में जिनसे उन्हें अब आज़ादी की उम्मीद भी नहीं। सिर्फ दो वक़्त की रोटी और एक आसरा छत का, ये सिर्फ दो शब्द नहीं इन शब्दों में समायी है जिंदगी इन बच्चों की
मैं बात कर रहा हु उन बच्चो की जो फसें है बाल श्रम के जाल में, आखिर क्यूँ ?
कभी जानने की कोशिश कर पाए हैं हम ?
हाँ खुद से एक सवाल : क्या मज़बूरी होगी बेचारे की पल भर का ख्याल उसके बारे में .
और जवाब भी खुद ............होगी कोई मजबूरी ....................................
पर क्या उस बचे के साथ हो रहे अत्याचार को आप अनदेखा कर लेंगे क्यूँ की वो आपका कुछ नहीं लगता। पूछो इस सवाल का जवाब अपनी आत्मा से तो जवाब ज़रूर मिलेगा और जो जवाब मिले उस पर अमल करने की कोशिश करना मेरे दोस्तों।
मजबूरी ही नहीं बाल तस्करी भी हो सकती है इसका कारण, नहीं लगता न के हिमाचल जैसे शांतिप्रिय राज्य में कहाँ होगी बाल तस्करी ये तो बाहरी राज्यों में होती हैं। पर क्या आप जानते हैं शिमला में काम कर रहे बाल श्रमिकों में पचासी प्रतिशत बाल श्रमिक यु पी, बिहार, नेपाल और अन्य बहरी राज्यौं से हैं जो की यहाँ अपने माँ बाप के साथ नहीं बल्कि चाचा , मामा या किसी सम्बन्धी के साथ रहता है, क्या वाकई वो उसके सम्बन्धी है या किसी बाल तरकर गैंग का हिस्सा ।
देवभूमि हिमाचल में भी बाल तस्करी कहीं अपनी जड़े फैला तो नहीं रही जवाब खोजना होगा
पर खोजेगा कौन मैं, आप , सरकार, राजनेता अगर ये बात सोचते रहे तो फिर ये बच्चे यूँ ही सिसक सिसक के दम तोड़ देंगे १
अगर इस बाल तस्करी की जडें काटनी है तो हर आदमी को तैयार होना पड़ेगा कहीं भी बच्चों का शोषण हो रहा हो तो कोशिश करें जानने करे और सोचे की आप उनके लिए क्या कर सकते हैं।
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